आज की इस आर्टिकल में हम चाय के विषय में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करेंगे l आज के इस लेख के विषय है "आल अबाउट टी "l
दुनियाभर में चाय के शौक़ीन की संख्या काफी अधिक है l दुनियाभर में कई लोग इसे है जो अपने दिन की शुरुआत चाय से ही करते है l चाय एक ऐसा पेय पदार्थ है जो सबका पसंदीदा पेय है l पानी के बाद चाय ही एक ऐसा पेय पदार्थ है जो सबसे अधिक पिया जाता है l वर्तमान समय में चाय हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है l
यदि थकान दूर करने की बात आये तो सबसे पहले चाय का ही नाम आता है l चाय तो हम रोज पीते ही है परन्तु चाय के विषय में कई ऐसी बाते है जो हम नही जानते है l जैसे कि चाय की शुरुआत कब और कहाँ हुई ,पूरी दुनिया में और भारत में चाय कब और कैसे पहुंची और कैसे यह लोगो का पसंदीद पेय पदार्थ बन गया l इन सभी से सम्बंधित प्रश्नों के बारे में हम इस लेख में चर्चा करेंगे l सबसे पहले जानते है कि चाय की शुरुआत कब ,कैसे और कहाँ हुई l
चाय की शुरुआत आज से लगभग 3000 साल पहले से मानी जाती है l चाय की शुरुआत के विषय में एक बेहद ही रोचक कहानी में आपको बताना चाहती हूँ l चीन के एक राजा जिनका नाम "शेन नुंग था " वह अपने बगीचे के सैर कर रहे थे की अचानक उनके पानी के गर्म प्याले में चाय की कुछ पत्तियाँ आकर गिर गयी जिससे की पानी का रंग बदल गया उन्होंने वह पानी पिया और उन्हें उस पानी का स्वाद काफी पसंद आया और उन्हें यह पेय पीकर काफी आराम भी मह्सूस हुआ l अतः उन्होंने चाय को अपने पेय में शामिल कर लिया l इसी के पश्चात् वहां चाय पीने की परंपरा की शुरुआत हुई l
इसके पश्चात 1610 ई के लगभग डच व्यापारी जो चीन गये थे l वे चीन से चाय को यूरोप ले गये l इसके बाद चाय धीरे-धीरे अन्य देशो में भी पहुँच गयी और इसका प्रचलन अन्य देशो में भी शुरू हो गया और चाय दुनियाभर में पसंदीदा पेय बन गया l
भारत में चाय की शुरुआत के विषय में बात की जाय तो भारत में इसके शुरुआत 1815 ई में मानी जाती है जब ब्रिटिश अधिकारी का दृष्टी असम की पहाड़ी ढालो पर उगने वाली झाड़ियो पर गयी l तब उस समय वहां के स्थानीय लोग इस एक पेय बनाकर इसका सेवन करते थे l अतः तत्कालीन गवर्नर विलियम बैंटेक ने 1834 में भारत में चाय की परंपरा शुरू करने के उद्देश्य से एक समिति का गठन किया और भारत के असम में चाय के बगान लगाये गये और इस प्रकार असम में बड़े स्तर पर चाय का उत्पादन होने लगा जो आज भी प्रभावी है l
चाय की शुरुआत करने वाला देश चीन ही चाय का सबसे बड़ा उत्पादक देश भी है l चीन ही वर्तमान में एक ऐसा देश है जो चाय का बड़े पैमाने पर औधोयोगिक उत्पादन करता है l चीन के बाद चाय उत्पादन में द्वीतीय स्थान पर भारत है l भारत के असम व पश्चिम बंगाल में चाय का सर्वाधिक उत्पादन होता है l क्योकि वहां की जलवायु व मिटटी चाय की पैदावार के लिए उपयुक्त है l असम का राजकीय पेय "चाय " ही है l चाय के प्रमुख निर्यातक की अगर बात की जाए तो प्रथम स्थान पर भारत है और भारत के पश्चात् श्रीलंका का स्थान आता है l श्रीलंका की राष्ट्रीय आय में चाय के निर्यात का बहुत बड़ा योगदान है l अन्य निर्यातक देशो में कीनिया, चीन व इंडोनेशिया है l
अन्य भारतीय चाय उत्पादक राज्य है - उत्तर प्रदेश,त्रिपुरा,हिमाचल प्रदेश,तमिलनाडु,कर्नाटक,केरल,त्रिपुरा आदि l
चाय की फसल को अक्टूबर-नवम्बर में बोया जाता है और वर्ष में तीन से चार बार इसकी पत्तियों को चुना जाता है l चाय की पैदावार हेतु उपयुक्त तापमान 21-27 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए और न्यूनतम वर्षा 125-150 सेमी होनी चाहिए l चाय का उत्पादन पहाड़ी भागो में अधिक होता है l क्योकि जल का इक्कट्ठा होना चाय के पौधे के लिए हानिकारक होता है और पहाड़ी भागो में जल इकठ्ठा नही हो पाता है l चाय की खेती हेतु भूमि का हल्का अम्लीय (PH मान 5-6 के बीच में होना चाहिए) होना आवश्यक है l चाय के पौधों को पहले छोटी-छोटी क्यारियों में लगाया जाता है फिर पौधों के बड़ा होने पर इन्हें किसी अन्य स्थान पर लगा दिया जाता है l
विश्व भर में चाय की काफी किस्में पाई जाती है। अलग-अलग देशों में अलग-अलग प्रकार की चाय की किस्मे जाती हैं। कुछ खास किस्म की अगर बात की जाए तो वह हैं ब्लैक टी, ग्रीन टी, उलॉन्ग टी,हर्बल टी, ऑर्गेनिक टी,लेमन टी l चाय की ये किस्मे लगभग सभी देशों में पायी जाती है । आइए हम चाय की इन किस्मों को बनाने की विधि और उनके फायदों के बारे में जान लेते हैं।
ब्लैक टी -
ब्लैक टी काले रंग की पत्तियां होती हैं जो कि हमारी इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत करने में मदद करती है।
बनाने की विधि - ब्लैक टी बनाने के लिए पानी को उबालकर उसमें ब्लैक की कुछ पत्तियां डालकर अदरक व इलायची मिला दे और उसे कुछ देर उबालें। टी के फ्लेवर को बढ़ाने के लिए इसमें चीनी/शहद और नींबू मिलाएं।
ब्लैक टी से आप मसाला चाय भी तैयार कर सकते हैं। बस इसमें दूध और मिला दें और हमारी मसाला चाय तैयार हो जाती है। इसके अलावा आप इसमें काली मिर्च, इलायची, दालचीनी , लौंग आदि को पीसकर भी डाल सकते हैं। इससे मसाला चाय का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। यह शरीर की थकान को मिनटों में गायब कर देती है साथ ही मोटापे को रोकने में भी कारगार है!
ग्रीन टी -
आजकल ग्रीन टी की मांग काफी बढ़ गई है लोग ग्रीन टी पीना पसंद कर रहे हैं। ग्रीन टी की पसंद का कारण है उसमें उपस्थित लाभदायक गुण l खास तौर पर चीन व जापान में इसकी पैदावार की जाती है।
बनाने की विधि - ग्रीन टी बनाने हेतु केवल गर्म पानी में ग्रीन टी मिला दी जाती है। इसके फ्लेवर को बढ़ाने के लिए इसमें शहद भी मिला सकते हैं l
ग्रीन टी शरीर में उपस्थित चर्बी को घटाने में मदद करती है। साथ ही कोलेस्ट्रॉल लेवल को भी कम करती है।
व्हाइट टी -
व्हाइट टी युवा पत्तियां है जो अभी कलियों में परिवर्तित नहीं हुई है। यह युवा पत्तियां काफी कोमल होती है।
बनाने की विधि - व्हाइट टी को बनाने के लिए आप इसकी पत्तियों को गर्म पानी में डालकर कुछ समय के लिए रख दें। इसके फ्लेवर को बढ़ाने के लिए उसमें अदरक , काली मिर्च, लौंग, इलायची पाउडर व थोड़ा शहद हाथ मिला सकते हैं।
व्हाइट टी दांतों व मसूड़ों संबंधी समस्याओं के लिए काफी फायदेमंद होती है। यह डायबिटीज को कंट्रोल करने, ग्लूकोस लेवल को कम करने, वजन घटाने, इम्यून सिस्टम मजबूत करने, यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों को रोकने में भी काफी सहायक होती है।
भारत के राज्यों में जलवायु और मिटटी भिन्न प्रकार की होने के कारण चाय की किस्मो में भी भिन्नता पायी जाती है l दार्जलिंग में भारत की सबसे अच्छी किस्म की चाय उगाई जाती है और दार्जलिंग की यह चाय विश्व की सर्वश्रेष्ठ चाय पानी जाती है l भारत में पायी जाने वाली चाय की मुख्य किस्मे कुछ इस प्रकार है - बटर टी, मसाला चाय, ग्रीन टी,ब्लैक टी, हर्बल टी, वाइट टी, आइस टी, नीलगिरी टी, असम टी , कांगड़ा टी l
किसी भी चीज का हम सेवन करते हैं तो उसके हमारे शरीर पर काफी प्रभाव होते हैं। यह लाभदायक हो सकता है बशर्ते उसका सेवन सीमित मात्रा में किया जाए। कई लोगों को आपने अक्सर सुना होगा। यह कहते हुए कि चाय का सेवन सेहत के लिए हानिकारक होता है, परंतु यह पूरी तरह तरह से सत्य नहीं है। चाय का सेवन हानिकारक हो सकता है। यदि उसका सेवन सीमित मात्रा से अधिक किया जाए। यदि आप सीमित मात्रा में चाय का सेवन करते हैं तो निश्चित ही यह हमारे स्वास्थ्य हेतु लाभदायक हो सकती है। चलिए हम चाय के फायदे व नुकसान जान लेते हैं।
चाय की पौधे का वैज्ञानिक नाम कैमिला साइंटिफिक है। चाय सर्दियों में हम सभी का पसंदीदा पेय पदार्थ है। भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में चाय का सर्वाधिक सेवन किया जाता है क्योंकि पहाड़ी क्षेत्र में ठंडक अधिक होती है और चाय ठंडक से राहत देने का काम करती है। वैसे तो चाय का सेवन हर मौसम में किया जाता है परंतु सर्दियों में इसकी मांग काफी अधिक बढ़ जाती है और गली मोहल्लों पर चाय की दुकानों पर भीड़ भी आप देखी सकते हैं।
चाय में कैफीन उपस्थित होता है जो चाय की लत लगा देता है। किसी भी चीज की अधिकता बुरी होती है। यदि सीमित मात्रा में चाय का सेवन करें तो यह कुछ लाभदाई ही होगी।
चाय का पौधा एक उष्णकटिबंधीय पौधा है। इसकी खेती हेतु बारिश व गर्म मौसम आवश्यक है। बारिश का होना चाय की खेती हेतु अत्यंत आवश्यक है। मौसम जितना आद्र वा शुष्क होगा, चाय के पौधे का विकास उतना ही अच्छा होगा। चाय के पौधे के विकास हेतु तापमान उपयुक्त होना चाहिए ( अधिकतम 35 डिग्री न्यूनतम 15 डिग्री) l
चाय के पौधे का झाड़ियों के रूप में विकास होता है। चाय के पौधे को उर्वरक की अधिक आवश्यकता होती है। अतः चाय के पौधे हेतु गड्ढा तैयार करते समय 15 किलो के लगभग गोबर की खाद व रासायनिक उर्वरक जैसे नाइट्रोजन, फास्फेट और पोटेशियम को मिला देना चाहिए और जिप्सम का भी छिड़काव करना चाहिए ताकि सल्फर की कमी ना हो।
प्रति हेक्टेयर में यदि देखा जाए तो 600-700 किलोग्राम तक चाय का उत्पादन हो जाता है। चाय के उत्पादन से इसकी कीमत भी किसानों को काफी अच्छी मिल जाती है और चाय की फसल की देखभाल हेतु ज्यादा खर्चा भी नहीं होता।