अंतरिक्ष पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर और खगोलीय पिंडो , तारो और ग्रहों के बीच का खाली स्थान होता है l अंतरिक्ष में न हवा है न पानी और न ही गुरुत्वाकर्षण बल मौजूद है l अंतरिक्ष में कोई भी माध्यम नही होता वहां पूरी तरह से निर्वात उपस्थित होता है इसलिए अंतरिक्ष में ध्वनि की आवाज़ को नही सुना जा सकता है l
यह कहना गलत होगा की अंतरिक्ष पूरी तरह से खाली है क्योकि यहाँ खाली जगह हायड्रोजन व हीलियम गैस और धूलों के कण भरी हुई होती है। इसके साथ ही यहाँ मेग्नेटिक फील्ड, एलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएसन, इन्फ्रारेड, अल्ट्रा वायलेट रेडिएसन, गामा रे और एक्स रे जैसे खतरनाक रेडिएसन होते है l अंतरिक्ष में ओक्सीजन नहीं होता अतः अंतरिक्ष में जीवित रहने के लिए हमें अपने साथ ओक्सीजन के सिलेंडर ले जाने पड़ते है l
यह प्रश्न अवश्य ही सभी के मन में आता है के आखिर अंतरिक्ष काला क्यों दिखाई देता है जबकि वहां सूर्य व उसके जेसे कई प्रकाशवान पिंड उपस्थित होते है वहां प्रकाश होता है परन्तु चूँकि अंतरिक्ष में ओक्सीजन के अणुओ की संख्या शून्य होती है और वहां वायुमंडल नहीं पाया जाता इसलिए वहां किसी भी प्रकार का प्रकीर्णन नहीं होता है अतः हमें अंतरिक्ष काला ही दिखाई देता है l
हम और आप लोग यह कल्पना भी नहीं कर सकते की अंतरिक्ष कितना बड़ा हो सकता है यह हम सब की कल्पना से भी परे है l अंतरिक्ष जो की अपने आप में एक रहस्य है और उसे जानने के लिए समय समय पर कई देश अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजते रहते है l अमेरिका, चीन, रूस,जर्मनी जैसे कई देश है जो अंतरिक्ष में अपने उपग्रह प्रक्षेपित करते रहते है l अंतरिक्ष में किसी भी देश द्वारा प्रक्षेपित प्रथम उपग्रह स्पुतनिक- l था जो पूर्व सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में प्रमोचित किया गया था I इसी प्रकार भारत भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में काफी आग पहुच चुका है l और भारत ने भी अंतरिक्ष में अपने कई गृह स्थापित किये है l
भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत डॉ विक्रम साराभाई ने की l इन्हें भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों का जनक कहा जाता है l भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत 1962 में डॉ विक्रम साराभाई की अध्यक्षता में गठित भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति के गठन के साथ हुई l इस समिति ने परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत कार्य करना प्रारंभ किया था l
इसके पश्चात 15 अगस्त 1969 में इस समिति का पुनर्गठन करके भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) की स्थापना की गयी l इसरो का मुख्यालय बेंगलोर में है I अंतरिक्ष अनुसन्धान को एक मजबूत वित्तीय आधार और कार्यक्रमों को सुचारू रूप से चलाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा 1972 में अंतरिक्ष विभाग और अंतरिक्ष आयोग का गठन किया और ISRO को अंतरिक्ष विभाग की अंतर्गत रखा गया l
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का प्रारंभ तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बा भूमध्य रेखीय रोकेट प्रक्षेपण केंद्र (TERLS) से 1963 में हुआ प्रमोचन केंद्र के रूप में थुम्बा का चुनाव इसलिए किया गया क्योकि पृथ्वी की भू-चुम्बकीय भूमध्य रेखा यहाँ से होकर गुजरती है I यहाँ से देश का पहला सौन्डिंग रोकेट "नाइक एपाश " जो अमेरिका द्वारा निर्मित था का प्रक्षेपण किया गया l
भारत का पहला उपग्रह आर्यभटट था जिसका नाम भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने प्रसिद्ध खगोलविद् और गणितज्ञ आर्यभट के नाम पर रखा l इसका वजन 360 किग्रा था l चुकि इस समय भारत के पास अपना प्रक्षेपणयान नहीं था अतः आर्यभट्ट को रूस के कास्पुतिन यार (बेकानूर) नामक स्थान से "कोसमोस -3M" प्रक्षेपण यान द्वारा 19 अप्रैल 1975 को प्रक्षेपित किया गया था I
आर्यभट्ट का निर्माण भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन द्वारा किया गया था l
23 अप्रैल 1975 को तकनीकी खराबी के कारण इस यान से वैज्ञानिको का संपर्क टूट गया और यह मिशन समाप्त हो गया परन्तु यह यान पृथ्वी के चारो ओर चक्कर लगाता रहा l 1992 तक यह यान नष्ट हो गया यह मिशन समाप्त हो गया परन्तु इस मिशन ने अंतरिक्ष में भारत के लिए राह खोल दी l आर्यभट्ट अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धी थी I
आर्यभट्ट के पश्चात भारत ने अपना दूसरा उपग्रह "भास्कर-l" को 7 जून 1979 को पूर्व सोवियत के बेकानूर प्रक्षेपण केंद्र से इंटर कोसमोस प्रक्षेपण यान द्वारा पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया l इस उपग्रह का वजन 445 किग्रा था l इस उपग्रह ने 1 अगस्त 1981 को काम करना बंद कर दिया l भास्कर-l के पश्चात भास्कर -ll प्रक्षेपण बेकानूर प्रक्षेपण केंद्र से ही 20 नवम्बर 1981 को किया गया l
रोहणी आर एस -l को 18 जुलाई 1980 को श्रीहरिकोटा से भारतीय प्रक्षेपण यान एस-एल-वी-3 द्वारा सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया I इस प्रकार रोहणी आर एस -l भारत द्वारा निर्मित व भारत द्वारा प्रक्षेपित प्रथम उपग्रह बन गया l इस उपग्रह के प्रक्षेपण से भारत ने भारत के प्रथम प्रक्षेपण यान एस-एल-वी-3 का परिक्षण किया l
भारत का प्रथम प्रायोगिक संचार उपग्रह एप्पल का प्रक्षेपण 19 जून 1981 को फ्रेंच गुआना के कोरु अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के एरियन-4 प्रक्षेपण यान द्वारा किया गया था l
एप्पल का प्रयोग टी.वी कार्यक्रमों के प्रसारण व रेडियो नेवर्किंग सहित कई संचार परीक्षणों में किया गया l एप्पल से प्राप्त अनुभव ने इनसेट श्रंखला के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई l
मेटसेट भारत का प्रथम मौसम पर्यवेक्षण उपग्रह है l इसे 12 सितम्बर 2002 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय प्रक्षेपण यान PSLV C-4 की सहायता से भू-स्थैतिक स्थानांतरण कक्षा में सम्फलता पूर्वक स्थापित किया गया l यह पहला अवसर था जब भारतीय प्रक्षेपण यान ने किसी उपग्रह को जिसका वजन 1000 किग्रा से अधिक था ,भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित किया क्योकि इससे पहले के सभी ग्रह पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किये गये थे l
एडुसेट स्वदेश निर्मित शिक्षण कार्य हेतु समर्पित दुनिया का प्रथम उपग्रह था जिसे 20 सितम्बर 2004 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान GSLV F-01 की सहायता से सफलता पूर्वक भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित किया गया l इस उपग्रह का निर्माण शिक्षा के क्षेत्र में नयी क्रांति और नयी दिशा लाने के लिए किया गया था l
पृथ्वी के संसाधन प्रबंधन और निगरानी के लिए भारत द्वारा निर्मित प्रथम उपग्रह कार्टोसेट था जिसका प्रक्षेपण 5 मई 2005 को श्रीहरिकोटा से PSLV C-6 प्रक्षेपण यान द्वारा किया गया l
एस.एल.वी -3 - एस.एल.वी -3 के निर्माण के साथ भारत ने प्रक्षेपण यान प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में अपना कदम रखा l और इसी के साथ भारत ने भी अपनी योग्यता साबित कर दी l एस.एल.वी -3 साधारण क्षमता का 4 चरणों वाला प्रक्षेपण यान था जो की 40 किग्रा के वजन के उपग्रह को पृथ्वी की निचली कक्ष में स्थापित कर सकता था l इसमें ईधन के रूप में ठोस प्रणोदक का उपयोग किया गया था l
ए.एस.एल.वी- यह एस.एल.वी -3 का ही संवर्द्धित रूप था जिसका उपयोग अधिक भार वाले अर्थात 100-150 किग्रा वजन के उपग्रहों को पृथ्वी के आतंरिक कक्षा में स्थापित करने के लिए किया गया था l यह 5 चरणों वाला उपग्रह प्रक्षेपण यान था जिसके प्रथम और द्वितीय चरण में हायड्रोक्सिल टरमिनेटेड पोली ब्युटाडायिन प्रणोदक और तृतीय व चतुर्थ चरण में एच.ई.एफ-20 (HEF) प्रणोदक का उपयोग किया गया था l
पी.एस.एल.वी - पी.एस.एल.वी का निर्माण 1200 किग्रा से अधिक भार वाले उपग्रहों को 900 किमी की उंचाई तक ध्रुवीय सूर्य समकालिक कक्षा में स्थापित करने के लिए किया गया था l पी.एस.एल.वी चार चरणों वाला उपग्रह प्रमोचक यान है जिसके प्रथम व तृतीय चरण में ठोस प्रणोदक के रूप में हायड्रोक्सिल टरमिनेटेड पोली ब्युटाडायिन व ओक्सिकारक के रूप में अमोनियम परक्लोरेट का उपयोग किया जाता है व द्वितीय व चतुर्थ चरण में द्रव प्रणोदक के रूप में अन्सिमेट्रिकल डाइ मिथाईल हायड्राजाइन व N2O4 का प्रयोग किया जाता है l
जी.एस.एल.वी- भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में 18 अप्रैल 2001 को नया अध्याय जोड़ा गया जब GSLC D-1 को श्रीहरिकोटा से लांच किया गया l इसे भू तुल्यकालिक उपग्रह प्रमोचक यान भी कहते है l यह 2-4 टन के उपग्रह को भू-तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित स्थापित कर सकता है l यह भारत का सबसे शक्तिशाली रोकेट है जो तीन चरणों में काम करता है l इसके प्रथम चरण में ठोस द्वितीय चरण में द्रव व तृतीय चरण में क्रायोजनिक इंजन का उपयोग किया गया है l इसमें ठोस प्रणोदक के रूप में हायड्रोक्सिल टरमिनेटेड पोली ब्युटाडायिन व ओक्सिकारक के रूप में अमोनियम परक्लोरेट का उपयोग किया जाता है व द्वितीय व चतुर्थ चरण में द्रव प्रणोदक के रूप में अन्सिमेट्रिकल डाइ मिथाईल हायड्राजाइन व N2O4 का प्रयोग किया जाता है l और तृतीय चरण में अत्यंत निम्न ताप पर द्रव हायड्रोजन (-250 C) और द्रव ओक्सीजन (-183 C) का प्रयोग किया जाता है l [0 C-150 C के नीचे के ताप को क्रायोजनिक ताप कहा जाता है]
यह भारत का सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान है l भारत ने क्रायोजनिक तकनीक का पहला सफल परिक्षण 28 अक्टूबर 2006 को तमिलनाडु के महेंद्रगिरी में किया l भारत क्रायोजनिक तकनीकी का सफलतापूर्वक परिक्षण करने वाला 6 वाँ देश है l इससे पूर्व यह क्षमता केवल अमेरिका, चीन, रूस, फ़्रांस, जापान के पास ही थी l क्रायोजनिक इंजन का प्रथम प्रयोग अमेरिका द्वारा एटलांस सनटूर नामक रोकेट में किया गया था l
हमने भारत के उपग्रह और प्रक्षेपण यान के बारे में जाना अब हम जानते है कि इन उपग्रह को अंतरिक्ष में कौन ले जाता है l अंतरिक्ष में किसी प्रक्षेपण यान और उपग्रह को ले जाने का कार्य रोकेट का होता है राकेट ही वह यन्त्र है जो उपग्रह या अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में पहुचाने का कार्य करता है l
राकेट के कार्यविधि न्यूटन के गति के तृतीय नियम पर आधारित है l इस नियम के अनुसार हर क्रिया के बराबर व विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है l अतः जब जब राकेट का इंजन गैस को बहार की ओर धकेलता है तब इस क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरुप गैस भी राकेट को बराबर ताकत से आगे की ओर धक्का देती है जिससे राकेट को आगे के और वेग मिलता है और वह आगे की और बड़ता है l
राकेट में ईधन के रूप में ठोस ओर द्रव दोनों प्रकार का ईधन प्रयोग किया जाता है l राकेट के भीतर एक कक्ष में ओक्सीजन की उपस्थिति में द्रव या ठोस ईधन को जालया जाता है इसके फलस्वरूप उच्च दाब पर जो गैस उत्पन्न होती है वह राकेट के पीछे एक संकरे मुख से बाहर आती है और इसकी प्रतिक्रिया के रूप में वह राकेट को आगे की ओर धक्का देती है और रोकेट को अत्यंत ही तीव्र वेग प्राप्त होता है l
राकेट इंजन और जेट इंजन में मूल अंतर यही होता है कि जेट इंजन ओक्सीजन की आपूर्ति वायु में उपस्थित ओक्सीजन से कर लेता है परन्तु अंतरिक्ष में ओक्सीजन नही होती अतः राकेट इंजन अपने साथ ओक्सीजन ले कर जाता है l
किसी भी वस्तु को पृथ्वी के वायुमंडल से बहार भेजने के लिए एक ख़ास वेग की आवश्यकता होती है जिसे पलायन वेग कहते है यदि किसी भी वस्तु को 11.2 किमी / से के वेग से अंतरिक्ष के ओर फेका जाए तो वह पृथ्वी के वायुमंडल को छोड़ कर अंतरिक्ष में प्रवेश कर जाती है और वापस धरती पर नहीं आती l अतः राकेट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए उसे 11.2 किमी / से का वेग देना पड़ता है ताकि वह पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर अंतरिक्ष में जा सके l
अंतरिक्ष में किसी उपग्रह या अंतरिक्ष यान को पहुचाने का कार्य तो राकेट करता है परन्तु अंतरिक्ष से राकेट वापस नहीं आती बल्कि अंतरिक्ष यान वापस आता है l
राकेट - राकेट एक ऐसा यन्त्र है जो किसी अंतरिक्ष यान या उपग्रह को अंतरिक्ष में पहुचता है l
अंतरिक्ष यान - अंतरिक्ष यान में बैठ कर ही अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में जाते है l अंतरिक्ष यान एक प्लेन के तरह ही होता है जिसमे अंतरिक्ष यात्री की जरुरत का हर सामान होता है l राकेट की सहायता से अंतरिक्ष में पहुचने के बाद यान का कंट्रोल अंतरिक्ष यात्री स्वयं कर सकता है l
अंतरिक्ष यान के साथ दो बूस्टर राकेट और एक मुख्य इंजन राकेट जोड़ दिया जाता है l बूस्टर राकेट का कार्य होता है राकेट को आगे की ओर तीव्र वेग देना और ईधन समाप्त होने के पश्चात यह राकेट से अलग हो जाता है l इसके पश्चात मुख्य इंजन राकेट का कार्य शुरू हो जाता है , अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष तक पहुंचाने की जिम्मेदारी इसकी ही होती है l अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में पहुंचाने के बाद मेन इंजन राकेट भी यान से अलग हो जाता है इसके बाद अंतरिक्ष यान का कंट्रोल अंतरिक्ष यात्री के हाथ में आ जाता है l
अंतरिक्ष में जाने के विषय में तो हमने जान लिया अब बारी आती है कि अंतरिक्ष से वापस कैसे आते है l जब अंतरिक्ष यान का काम समाप्त हो जाता है और उसे वापस आना होता है तो वह पृथ्वी के चारो और चक्कर लगाने लगता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने लगता है l जब वह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो वह पृथ्वी के समानांतर ना होकर थोडा सा उठा होता है क्योकि जब अंतरिक्ष यान पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो उसे तीव्र हवाओ का सामना करना पड़ता है और हवा के दाब व घर्षण से उसमे आगे भी लग सकती है अतः इसका सामना करने के लिए अंतरिक्ष यान के नीचे एक तापरोधी प्लेट लगा दी जाती है जिससे कि वह हवा के घर्षण को सह सके l
जब यान पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाता है उसके पश्चात वह पृथ्वी के समानांतर हो जाता है और आम प्लेनों की तरह ही लैंडिंग करता है चूँकि लैंडिंग के समय यान की गति अन्य प्लेनों की तुलना में अत्यधिक होती है अतः इसमें पीछे की तरफ एक पेराशूट खुल जाता है जो इसकी speed को कंकर देता है और लैंडिंग सुरक्षित हो जाती है l
इस प्रकार अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष से वापस धरती पर आ जाता है l
रियूजेबल राकेट का अर्थ है राकेट को पुनः उपयोग हेतु बनाने के लिए धरती पर वापस लाना l बूस्टर राकेट व मेन इंजन राकेट को वापस धरती पर लाने के लिए इसमें सेंसर लगा दिए जाते है जब ये अंतरिक्ष यान से अलग हो जाते है तो राकेट में लगे सेंसर राकेट का मुख धरती की ओर कर देते है और जब राकेट पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाता है तो यह अपना मुख पुनः अंतरिक्ष की ओर कर लेता है l इसके पश्चात यह पृथ्वी के ग्रुत्वाकर्षण से नीचे की ओर लगता है l धरती पर इन राकेटो के लिए लौन्चिंग पेड बने होते है और नीचे आकर यह राकेट लौन्चिंग पेड में फिट हो जाता है l और इस प्रकार इन राकेटो का पुनः उपयोग किया जा सकता है l
एक स्पेस क्राफ्ट को अंतरिक्ष में ले जाने का खर्चा लगभग 8 मिलियन डॉलर होता है l एलन मस्क जो एक्सप्लोरेशन टेक्नोलॉजी कारपोरेशन कंपनी (Space - x) के मालिक है उन्होंने रियूजेबल राकेट बनाने में सफलता प्राप्त की है लगातार तीन असफल प्रयासों से बाद चौथे प्रयास में उन्हें ये सफलता प्राप्त हुई l उन्हें यह सफलता अप्रैल 2016 में मिली जब उनका बनाया एक राकेट सुरक्षित धरती पर वापस आया और इस प्रकार Space-X कम्पनी के फोल्कन फर्स्ट ने इतिहास रच दिया और यह पहला रियूजेबल राकेट बन गया l
स्पेस-X कम्पनी अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनियो की तुलना में बहुत कम खर्च पर राकेटो को लांच करने की सुविधा देती है l
भू- स्थेतिक कक्षा - भू-स्थेतिक कक्षा पृथ्वी से 360000 किमी की दूरी पर स्थित होती है l इस कक्षा में स्थित उपग्रह का परिभ्रमण काल पृथ्वी के परिभ्रमण काल के बराबर ही होती है l इस कक्षा में उपग्रह पृथ्वी से स्थिर दिखाई देता है l यह कक्षा भूमध्य रेखा पर स्थित होती है l
ध्रुवीय कक्षा - यह कक्षा पृथ्वी से लगभग 900 किमी के उंचाई पर स्थित होती है l दूर संवेदी उपग्रह इसी कक्षा में चक्कर लगाते रहते है l
अंतरिक्ष स्टेशन - अंतरिक्ष स्टेशन अंतरिक्ष में मानव निर्मित एक ऐसा स्टेशन है जिसमे किसी भी अंतरिक्ष यान को उतारा जा सकता है और अंतरिक्ष यान इससे जुड़ सकता है l अंतरिक्ष स्टेशन एक ऐसा स्थान है जहाँ से पृथ्वी का सर्वेक्षण किया जा सकता है l इसे पृथ्वी की निम्न वृतीय कक्षा में स्थापित किया जाता है l
अंतरिक्ष प्रयोगशाला - एक विशेष प्रकार का उपग्रह जो पृथ्वी की कक्षा में अंतरिक्ष में तैरता है और जहाँ अंतरिक्ष सम्बन्धी शोध किये जाते है l
दूरसंवेदी उपग्रह - ऐसा उपग्रह जिसकी सहायता से पृथ्वी की सतह पर स्थित वस्तुओ के चित्र खीचे जा सके l हमें जिस भी जगह की स्थिति जाननी होती है उपग्रह को वहां सेट कर दिया जाता है और वह उपग्रह उस स्थान के चित्र खीच कर वैज्ञानिको को भेज देता है l और उस स्थान की स्थिति की जानकारी वैज्ञानिको को हो जाती है l